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पद्म श्री सम्मानित पीयूष पांडे का निधन, अबकी बार, मोदी सरकार, पल्स पोलियो , दो बूँद जिंदगी के.. जैसे नारे देने वाले ऐडगुरु

पद्म श्री विजेता पीयूष पांडे का निधन, अबकी बार, मोदी सरकार, पल्स पोलियो , दो बूँद जिंदगी के.. जैसे नारे देने वाले ऐडगुरु

पीयूष पांडे का निधन 24 अक्तूबर 2025 को हुआ, वे 70 वर्ष के थे। उनके निधन का कारण एक संक्रमण था, खासकर निमोनिया से जूझने के बाद उनकी स्थिति गंभीर हो गई थी।

उनके निधन पर देश-विदेश में विज्ञापन, मीडिया और मनोरंजन जगत से भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ आईं। उनकी बहन इला अरुण ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “बहुत दुःख सहित हमें यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज सुबह हमने अपने सबसे प्यारे और महान भाई पीयूष पांडे को खो दिया है।”

पीयूष पांडे भारत के विज्ञापन उद्योग के महान रचनाकार और नेता थे। उन्होंने भारतीय विज्ञापन के स्वर-रूप को बदलने में अहम भूमिका निभाई। उन्हें हिन्दी-अनुभव और भारतीय संस्कृति के भाव विज्ञापन में समाहित करने का श्रेय जाता है।

उनका जन्म 5 सितंबर 1955 को जयपुर (राजस्थान) में हुआ था।

1982 में उन्होंने Ogilvy & Mather India (अब Ogilvy India) में अपने विज्ञापन करियर की शुरुआत की।

उन्होंने कई प्रसिद्ध अभियानों को जन्म दिया, जैसे कि मिले सुर मेरा तुम्हारा, Fevicol के “तोड़ने वाली नहीं …” टैगलाइन, Cadbury का “कुछ खास है…” अभियान, और Vodafone के मशहूर पग-कुत्ते वाले विज्ञापन।

उन्होंने विज्ञापन को सिर्फ उत्पाद-प्रचार के माध्यम से आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि उसमें भारतीय मन, संस्कृति, बोल-चाल की भाषा और भावनाएं समाहित कीं।

पद्म श्री सहित कई पुरस्कार भी प्राप्त प्राप्त किए…

पीयूष पांडे की विशेष शैली थी — वे भारतीय भाषा, भारतीय मिट्टी की गंध, और आम जन-जीवन के अनुभव को विज्ञापन की भाषा में पिरोते थे। उनकी विज्ञापनों में मजा, भावनात्मक जुड़ाव, सरलता और भारत की विविधता झलकती थी। उनका यह योगदान विज्ञापन जगत के लिए मील का पत्थर रहा है — “भारतियत” को ब्रांड कहानियों में समाहित करने का काम उन्होंने सफलतापूर्वक किया।

उनकी स्मृति में कई बातें महत्वपूर्ण हैं:

उन्होंने विज्ञापन को सिर्फ एक कॉर्पोरेट मशीन नहीं बनने दिया; बल्कि उसमें मानवीय कहानियाँ, भावनाएँ और सामाजिक संदेश जोड़े।

उन-उन अभियानों ने न केवल ब्रांड को पहचाना, बल्कि भारतीय उपभोक्ता की भाषा और भावना को समझा।

विज्ञापन-उद्योग में आने वाले कई लोगों के लिए प्रेरणा बने — रचनात्मकता, सादगी और भारतीय सांस्कृतिक संदर्भ को अपनाना उनके लिए एक मापदंड था।

उनकी आत्मा को शांति मिले — और उन्होंने जो योगदान दिया, वह सदैव स्मरणीय रहेगा।

पीयूष पांडे के सबसे यादगार विज्ञापन अभियानों की कहानियाँ हैं — हर कहानी में रचनात्मक सोच, लोगों से जुड़ाव, और हिन्दुस्तानी भावनाओं की गहराई झलकती है

1. Fevicol – “जोड़ तो टूटेगा नहीं”, वर्ष: 1988

कंपनी: Pidilite Industries

विज्ञापन एजेंसी: Ogilvy India

कहानी:

इस विज्ञापन में दिखाया गया — एक ट्रक, जिसके पीछे लिखा है “Fevicol”, और उसमें इतने लोग चढ़े हैं कि गिनती खत्म हो जाए।फिर भी ट्रक की बॉडी टूटी नहीं!

“Fevicol का जोड़ है, टूटेगा नहीं!”

पीयूष पांडे ने कहा था — “हम ऐसा कुछ बनाना चाहते थे जिससे लोग न सिर्फ Fevicol को याद रखें, बल्कि मुस्कुरा कर जुड़ाव महसूस करें।”

इसमें किसी स्टार को नहीं लिया गया — बस आम भारतीय चेहरे।यही इसकी ताकत थी: सच्चाई और सरलता।

2. Cadbury Dairy Milk – “क्योंकि कुछ खास है हम में”

वर्ष: 1994, विज्ञापन: “Kuch Khaas Hai Zindagi Mein”

निर्देशक: प्रसून पांडे (पीयूष के भाई)

एक क्रिकेट मैच के दौरान — जब खिलाड़ी चौका लगाता है, उसकी गर्लफ्रेंड मैदान में दौड़कर आती है, झूमती है, और चॉकलेट खाकर जश्न मनाती है।उस दौर में भारतीय समाज में ऐसी आज़ादी और सहजता दिखाना बहुत साहसी कदम था।

Cadbury चाहती थी कि चॉकलेट को “बच्चों की चीज़” से “हर उम्र की खुशी” में बदला जाए।पांडे ने इसे भावनाओं से जोड़ा — “खुशी बाँटने की मिठास।” “जब हम भावनाएँ बाँटते हैं, वही असली ब्रांड बनता है।”

यह कैंपेन इतना सफल हुआ कि Dairy Milk भारतीय त्यौहारों का हिस्सा बन गया।

🏍️ 3. Hamara Bajaj – “Buland Bharat ki Buland Tasveer”

वर्ष: 1989, कंपनी: Bajaj Auto

इस विज्ञापन ने देश को आत्मगौरव से भर दिया।

“Hamara Bajaj… Buland Bharat ki Buland Tasveer…”

उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था खुली नहीं थी, विदेशी ब्रांड नहीं थे।यह विज्ञापन सिर्फ एक बाइक नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास की आवाज़ बना।

पांडे ने कहा था —“मैंने एक मोटरसाइकिल नहीं, एक भावना बेची — कि ये हमारी पहचान है।”

इसकी शूटिंग दिल्ली, बनारस, और मुंबई की सड़कों पर हुई थी।किसी मॉडल नहीं — असली लोग, असली भारत दिखाया गया।

4. Pulse Polio Campaign – “दो बूंद ज़िन्दगी की”

वर्ष: 1995, भारत सरकार

उस समय पोलियो एक बड़ा खतरा था। सरकार चाहती थी कि हर व्यक्ति बच्चों को पोलियो की खुराक दिलवाए।

पांडे ने इसे भावनात्मक टोन में रूपांतरित किया — “हर बच्चा कीमती है — दो बूंद ज़िन्दगी की।”

इस अभियान में उन्होंने “ममता”, “जिम्मेदारी” और “देशहित” की भाषा जोड़ी।बाद में यह अभियान भारत में पोलियो उन्मूलन के प्रतीक के रूप में जाना गया।

“यह मेरे करियर का सबसे अर्थपूर्ण काम था।” — पीयूष पांडे

पीयूष पांडे के ऑफिस में एक बोर्ड टंगा था, जिस पर लिखा था — “विज्ञापन वो नहीं जो आप बोलते हैं,

विज्ञापन वो है जो लोग आपके बाद भी दोहराते हैं।”

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