छठ पूजा एक अनुपम और पवित्र पर्व है, जिसे सूर्योपासना का महापर्व कहा जाता है। यह पर्व मुख्यतः बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम और निष्ठा के साथ मनाया जाता है।
यह साल में दो बार (चैत्र और कार्तिक मास में) मनाया जाता है, लेकिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला छठ सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जिसे ‘छठ महापर्व’ भी कहते हैं।
अब बात करते हैं आखिर क्या है छठ पूजा ?
छठ पूजा सूर्य देव (भगवान भास्कर) और उनकी बहन छठी मैया (षष्ठी माता) को समर्पित चार दिवसीय त्योहार है। यह सनातन धर्म के सबसे कठिन व्रतों में से एक है, जिसमें व्रती परिवार की सुख-समृद्धि, संतान के दीर्घायु और रोगमुक्त जीवन की कामना करते हैं।
- इस पर्व में उगते और डूबते दोनों सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य को जीवनदायिनी ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जबकि छठी मैया को संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया को सूर्य देव की बहन माना जाता है।
- यह व्रत अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है, जिसमें व्रती लगभग 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखते हैं।
- इस पूरे पर्व के दौरान अत्यंत शुद्धता और पवित्रता का पालन किया जाता है। प्रसाद बनाने से लेकर पूजा सामग्री जुटाने तक, हर कार्य में सात्विकता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। साथ ही सभी चीजों में प्रकृति प्रदत्त चीजों का इस्तेमाल किया जाता है….

चार दिवसीय अनुष्ठान, छठ महापर्व चार दिनों तक चलता है:
- नहाय-खाय (पहला दिन): व्रती नदी या तालाब में स्नान करते हैं और सात्विक भोजन (जैसे कद्दू-भात) ग्रहण करते हैं, जिसके बाद ही परिवार के बाकी सदस्य भोजन करते हैं। बिना नमक का भोजन, पूर्ण शुद्धता, और आत्मसंयम रखते हुए सूर्य देवता की आराधना करते हैं। यह व्रत के लिए शरीर और मन को शुद्ध करने की प्रक्रिया है।
- खरना (दूसरा दिन): इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर छठी मैया को भोग लगाते हैं। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ हो जाता है।
- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): व्रती और उनका परिवार नदी या तालाब के घाट पर जाकर अस्त होते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य देते हैं। यह दिन भक्ति और समर्पण का सबसे भावनात्मक पल होता है।
- उषा अर्घ्य और पारण (चौथा दिन): इस दिन घाट पर उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रती छठ मैया से अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करते हैं और फिर प्रसाद ग्रहण करके 36 घंटे के व्रत का पारण कर समापन करते हैं।

बिहारियों में छठ पूजा को लेकर इतनी आस्था क्यों है?
बिहार और पूर्वांचल के लोगों के लिए छठ पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक अस्मिता और अटूट आस्था का प्रतीक है। इसके कई कारण हैं:
- यह पर्व वैदिक काल से जुड़ा है और पीढ़ी दर पीढ़ी लोक परंपराओं के माध्यम से जीवित रहा है। इसकी जड़ें लोककथाओं और रीति-रिवाजों में गहराई से समाई हुई हैं।
- 36 घंटे का निर्जला व्रत, पवित्रता के कड़े नियम और कठोर संयम, व्रती के त्याग और समर्पण को दर्शाते हैं। व्रती के इस तप को परिवार की भलाई के लिए किया गया सबसे बड़ा बलिदान माना जाता है, जिससे लोगों का विश्वास और गहरा होता है।
- यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें उगते और डूबते दोनों सूर्य की पूजा की जाती है। यह प्रकृति (सूर्य, जल, नदी) के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने का पर्व है, जो जीवन के आधार हैं।
- यह व्रत मुख्य रूप से संतान की लंबी आयु, परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्य के लिए किया जाता है, जो हर गृहस्थ के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता होती है।
- छठ पूजा एक निजी व्रत होते हुए भी सामूहिक उल्लास का पर्व है। घाटों पर पूरा समाज एक साथ आता है, सेवा करता है और प्रसाद बांटता है, जो सामाजिक समरसता और एकजुटता को बढ़ाता है।
- इस पर्व को महाभारत काल की कथाओं से भी जोड़ा जाता है, जैसे कि पांडवों को राजपाट की पुनः प्राप्ति के लिए द्रौपदी द्वारा यह व्रत रखना, या सूर्यपुत्र कर्ण का सूर्य की उपासना करना। इन कथाओं से आस्था को बल मिलता है।
- इस पर्व में कोई आडंबर नहीं होता, न मूर्तियाँ, न दिखावा — सिर्फ प्रकृति, पानी, और सूर्य की साक्षी में की जाती है आराधना।
इन सभी कारणों से छठ पूजा बिहारियों के लिए सबसे बड़ा महापर्व बन गया है, जिसे वे दुनिया के किसी भी कोने में हों, पूरे विधि-विधान और पवित्रता के साथ मनाते हैं।

महापर्व छठ : विज्ञान और प्रकृति का उत्सव
छठ पूजा न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
सूर्य ही जीवन का स्रोत है, और उसकी किरणों से पृथ्वी पर ऊर्जा और स्वास्थ्य बना रहता है।
अर्घ्य देने का समय (सूर्योदय और सूर्यास्त) वह क्षण होता है जब सूर्य की किरणें शरीर के लिए सबसे लाभकारी मानी जाती हैं।
जल में खड़े होकर सूर्य की उपासना करना शरीर और मन दोनों के लिए शुद्धिकरण का माध्यम है।
छठ पूजा बिहार की आत्मा है — जहाँ श्रद्धा, अनुशासन, और परिवार के प्रति प्रेम एक साथ झलकता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति की पूजा ही असली धर्म है, और सच्ची भक्ति वही है जो दिखावे से परे, मन की गहराई से की जाए।
छठ मैया सबके घर सुख-शांति और समृद्धि लाएँ — यही कामना।





