दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक पर्व है। यह पर्व न केवल भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है, बल्कि प्रकृति, पर्यावरण और पशु संरक्षण का भी संदेश देता है।
गोवर्धन पूजा क्या है?
गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट उत्सव के नाम से भी जाना जाता है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं, जो उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है। माना जाता है कि इस पर्वत को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथों पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
गोवर्धन पूजा प्रकृति की पूजा का प्रतीक है, जिसकी शुरुआत स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। इस दिन भक्त गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक स्वरूप बनाते हैं। इसे फूल, धूप, दीप और विभिन्न खाद्य सामग्री से सजाया जाता है। इस पर्वत की विधि-विधान से पूजा की जाती है और इसकी परिक्रमा करने का भी विशेष महत्व होता है।
इस दिन कई प्रकार के शाकाहारी व्यंजन, मिठाइयाँ, फल और पकवान बनाए जाते हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से अन्नकूट कहा जाता है। अन्नकूट का अर्थ है ‘भोजन का पहाड़’। ये पकवान भगवान श्रीकृष्ण को भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं, जो प्रचुरता और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार ब्रजवासी इंद्र देव की पूजा कर वर्षा के लिए यज्ञ करते थे। भगवान कृष्ण ने उनसे कहा कि हमें वर्षा के देवता की नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो हमें घास, जल और भोजन देता है।
इस बात से इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने भारी वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रज की रक्षा की। उस दिन से हर वर्ष गोवर्धन पूजा के रूप में इस दिव्य घटना का स्मरण किया जाता है।
यह घटना दर्शाती है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान की शरण में आते हैं, वे हर संकट से सुरक्षित रहते हैं।
यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा देवराज इंद्र के अहंकार को दूर करने की कथा भी है, जो विनम्रता के महत्व को उजागर करती है।
पूजा की विधि
- गोवर्धन पर्वत का प्रतीक – गोबर, मिट्टी या आटे से पर्वत का आकार बनाया जाता है।
- अन्नकूट भोग – विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाइयाँ और अनाज भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाते हैं।
- गायों की पूजा – गायों को सजाकर उनकी आरती की जाती है क्योंकि वे ब्रज संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।
- परिक्रमा – श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत (या उसके प्रतीक) की परिक्रमा करते हैं।
यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा ही सच्ची भक्ति है। भगवान कृष्ण ने यह बताया कि हमें देवताओं से अधिक धरती, जल, पेड़-पौधे और पशुओं की सेवा करनी चाहिए क्योंकि वही हमारे जीवन का आधार हैं।
गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सामूहिक एकता का पर्व है। यह हमें याद दिलाता है कि ईश्वर वहीं है जहाँ प्रकृति का सम्मान होता है।
गोवर्धन पूजा का सच्चा अर्थ है – धरती को नमन, गायों का सम्मान और मानवता का कल्याण है..





