छठ महापर्व को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल कराने के लिए भारत सरकार अभियान तेजी से चल रहा है। इस पहल को एक रणनीतिक कूटनीतिक और सांस्कृतिक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें कई देशों के साथ बहुराष्ट्रीय नामांकन, गहन अकादमिक और दृश्य दस्तावेज़ीकरण, तथा इस पर्व के अनूठे मूल्यों को प्रदर्शित करने के लिए एक ठोस प्रयास शामिल है। जहाँ एक ओर यूनेस्को का टैग छठ के वैश्विक कद को बढ़ाएगा और भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को मजबूत करेगा…
छठ महापर्व : प्रकृति की पूजा, एक प्राचीन सूर्य परंपरा
छठ महापर्व, जिसे सूर्य देव और उनकी सहचरी छठी मैया को समर्पित किया जाता है, एक प्राचीन, चार दिवसीय उत्सव है । यह भारत के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है । इस पर्व का भौगोलिक विस्तार बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित भारत के पूर्वी हिस्सों में है, और प्रवासी भारतीयों द्वारा इसे मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, यूएई तथा नीदरलैंड जैसे देशों में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है ।
नेपाल के दक्षिणी क्षेत्र और मिथिला में भी इसका व्यापक आयोजन होता है । यह पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, शुचिता और सामुदायिक सहभागिता का प्रतीक है, जो इसे केवल एक धार्मिक अनुष्ठान के बजाय एक समग्र सामाजिक-सांस्कृतिक घटना बनाता है।

वैश्विक पहचान के लिए एक अभियान
भारत सरकार ने छठ महापर्व को यूनेस्को की प्रतिष्ठित सूची में शामिल कराने की प्रक्रिया शुरू की है, जिसे कई लोग इस पर्व को वह वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं, जिसका यह हकदार है ।
यह अभियान भारत के सफल सांस्कृतिक कूटनीतिक प्रयासों की एक अगली कड़ी के रूप में सामने आया है, जिसमें पहले से ही योग, कुंभ मेला और कोलकाता की दुर्गा पूजा को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया जा चुका है । यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची में पहले से ही 15 तत्वों को शामिल करके, भारत अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा में अग्रणी देशों में से एक है ।

यह अभियान कोई नई या अलग-थलग घटना नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक और सुस्थापित राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा है। भारत ने पहले की सफल नामांकनों के अनुभव का लाभ उठाते हुए एक संगठित और संस्थागत दृष्टिकोण अपनाया है। इस प्रयास में विभिन्न सरकारी मंत्रालय और सांस्कृतिक संस्थान शामिल हैं, जो इस पहल के राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व को दर्शाता है ।
यह भी महत्वपूर्ण है कि यह सरकारी कदम जमीनी स्तर पर लंबे समय से चली आ रही एक मांग का भी जवाब है। अररिया में छठ पूजा समिति जैसे स्थानीय संगठनों ने इस मान्यता के लिए मांग पत्र सौंपे थे, जिससे यह प्रमाणित होता है कि सरकार की यह पहल समुदाय की भावनाओं के अनुरूप है ।

भारत का सक्रिय अभियान: एक बहु-एजेंसी प्रयास
छठ महापर्व के लिए यूनेस्को का टैग हासिल करने का आधिकारिक अभियान केंद्रीय संस्कृति सचिव विवेक अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोजित एक उच्च-स्तरीय बैठक से शुरू हुआ । इस बैठक में संस्कृति मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, संगीत नाटक अकादमी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के अधिकारियों ने भाग लिया। इस बहु-एजेंसी दृष्टिकोण का उद्देश्य इस पहल को आवश्यक राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन प्रदान करना है।
इसके अतिरिक्त, ‘छठी मैया फाउंडेशन’ और उसके अध्यक्ष संदीप कुमार दुबे जैसे नागरिक समाज संगठनों ने भी इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के बीच समन्वय को प्रदर्शित करता है ।
भारत ने छठ के लिए 2026-27 चक्र हेतु “बहुराष्ट्रीय नामांकन” प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है । इस उद्देश्य के लिए, भारत ने सूरीनाम, नीदरलैंड, मॉरीशस, फिजी और यूएई जैसे देशों से सहयोग मांगा है ।
इन देशों में भारतीय प्रवासियों का बड़ा समुदाय है, जो सदियों से छठ मनाता आ रहा है। इन देशों के वरिष्ठ राजनयिक प्रतिनिधियों ने इस पहल का स्वागत किया है और नामांकन प्रक्रिया के लिए आवश्यक डेटा प्रदान करने में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया है ।

यह बहुराष्ट्रीय नामांकन एक परिष्कृत कूटनीतिक युक्ति है। एक ऐसा पर्व जिसे मुख्य रूप से भारत के एक विशिष्ट क्षेत्र से जोड़ा जाता है, उसे यूनेस्को द्वारा सीमित वैश्विक महत्व का माना जा सकता है। हालाँकि, अन्य देशों में भी छठ के व्यापक रूप से मनाए जाने का प्रदर्शन करके, भारत इस पर्व के “उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य” के लिए एक मजबूत तर्क प्रस्तुत कर सकता है।
एकतरफा प्रस्ताव को बहुराष्ट्रीय प्रस्ताव में बदलकर, भारत न केवल एक अधिक सम्मोहक मामला प्रस्तुत कर रहा है, बल्कि वह इन देशों के साथ अपने सांस्कृतिक संबंधों को भी मजबूत कर रहा है और अपने प्रवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान को भी मान्यता दे रहा है। विदेश मंत्रालय की भागीदारी इस कदम के कूटनीतिक आयाम की पुष्टि करती है ।
यूनेस्को में नामांकन के लिए, एक विस्तृत दस्तावेज़ तैयार किया जा रहा है, जिसमें छठ महापर्व की ऐतिहासिक, समाजशास्त्रीय, कलात्मक और धार्मिक विविधता का गहन दस्तावेज़ीकरण किया जाएगा ।
बिहार का कला, संस्कृति एवं युवा विभाग इस कार्य में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज के साथ “नॉलेज पार्टनर” के रूप में काम कर रहा है । दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है ।

दस्तावेज़ीकरण के लिए कई विशिष्ट गतिविधियाँ नियोजित हैं:
- अक्टूबर 2025 में पटना में एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जाएगा, जिसमें शिकागो की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रो. डॉ. रॉब लिन रोथ जैसे विदेशी विद्वानों सहित देश-विदेश के विशेषज्ञ भाग लेंगे ।
- छठ की परंपराओं और घाटों के दृश्यों को कैद करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय फोटो सैलॉन का आयोजन होगा ।
- लोकगायिका शारदा सिन्हा द्वारा गाए गए छठ के पारंपरिक गीतों सहित मौखिक परंपराओं का संकलन किया जा रहा है ।
- सूर्य देव की प्राचीन प्रस्तर मूर्तियों का दस्तावेज़ीकरण करके एक ‘कॉफी टेबल बुक’ प्रकाशित करने की भी योजना है ।
छठ हमें यह बताता है जहां सभी उगते हुए सूरज की पूजा करते हैं वही छठ में डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है….
छठ न सिर्फ एक त्योहार है साथ ही यह हमारे प्रतिदिन के जीवन में प्रकृति के मह्त्व को भी समझाता है कि प्रकृति मानव जीवन के लिए कितनी आवश्यक है, और हमें कैसे इसका सम्मान करना चाहिए…





